१३ फरवरी, २०१७ को ख़त्म हुआ।
अच्छा अंत ५ (सानाए-क)
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#0@0 पर्वत के चोटी पर स्थित मोरिया देवालय।
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#0@1 तलहटी पर चेरी ब्लॉसम खिल रहे थे पर चोटी अब भी बर्फ़ से ढकी थी।
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#0@2 बर्फ़ न होने से भी काम ही इंसान यहाँ आया करते थे।
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Kanako
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#0@3 "लगता है काम मुश्किल था।
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#0@4 योकाई विनाश आसान नहीं।"
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Sanae
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#0@5 "सो तो है।
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#0@6 "मैं एक जहाज़ का पीछा कर रही थी कि अचानक
मैं एक ऐसी विश्व में पहुँची जहाँ से भागना संभव नहीं था।
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Sanae
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#0@7 तब मैंने एक इंसान से से सहायता माँगी और वापस आई।"
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Kanako
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#0@8 "अच्छा....
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#0@9 तो ये उस सहायता के बदले में है?"
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Kanako
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#0@10 " म्योरेन मंदिर के निर्माण में सहायता करें। हमें कामगार चाहिए।"
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Sanae
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#0@11 "वैसे हाँ, उसे कहा कि वो एक मंदिर बनाना चाहती है
तो मैंने सोचा कि उसकी सहायता करना अच्छा होगा।
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#0@12 देखिए, उसे आपके और सुवाको जी के कौशल वाले लोग चाहिए।"
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Kanako
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#0@13 "लेकिन जहाज़ के एक सैर के बदले ये बहुत ज़्यादा है।"
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Sanae
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#0@14 "पर मेरे पास घर जाने का रास्ता नहीं था।"
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Kanako
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#0@15 "ख़ैर छोड़ो। तो उसका नाम क्या था?"
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Sanae
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#0@16 "ब्याकुरेन। ब्याकुरेन हिजिरी।"
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Kanako
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#0@17 "कितना संदेहजनक है।"
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Kanako
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#0@18 "तुमने कहा कि वो कई वर्षों तक धरती के नीचे क़ैद थी,
लेकिन निकालकर सबसे वो एक मंदिर बनाना चाहती है?
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Sanae
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#0@19 "हाँ, वो भी सही है।
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#0@20 मैं माकाई से घर आने के बारे में चिंतित थी, इसलिए भूल गई।"
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Kanako
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#0@21 "कोई बात नहीं, तो उसकी सहायता क्यों नहीं करते?
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#0@22 इससे हम इस ब्याकुरेन को परख लेंगे।"
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Sanae
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#0@23 "आह, धन्यवाद।"
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Kanako
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#0@24 "तुम भी सहायता करने वाली हो।"
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Sanae
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#0@25 "आह, पर मैं शारीरिक श्रम में अछि नहीं हूँ...."
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#0@26 और इस तरह कानाको और सुवाको ने म्योरेन मंदिर का निर्माण किया।
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#0@27 इसे चुटकी में ख़त्म कर दिया गया। सुवाको ने ज़मीन को समतल कर दिया, जहाज़ को नीचे ले आई और मंदिर तैयार था।
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#0@28 कानको ने ब्याकुरेन और उसके योकाइयों को ध्यान से देखा।
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#0@29 योकाई ब्याकुरेन की इज़्ज़त करते थे।
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#0@30 कनाको को यह अजीब लगा कि योकाई एक भिक्षु की
इतनी इज़्ज़त करते थे जिसने एक मंदिर बनाया हो।
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#0@31 ब्याकुरेन हमेशा इंसानों और योकाइयों के साथ स्पष्टता और सच्चाई से पेश आती थी।
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#0@32 फिर वह संदेह से भरे कानाको की ओर मुड़ी और उसका दिल से धन्यवाद किया।
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#0@33 "तुम पर्वत की देवी हो न? मैं देखते ही पहचान गई।"
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#0@34 यह कहकर वह अपनी परिस्थिति समझाने लगी।
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#0@35 वह कहाँ जन्मी थी,
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#0@36 उसने कैसा जीवन बिताया,
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#0@37 और उसे क्यों क़ैद कर दिया गया था।
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#0@38 कानाको को उसकी कहानी में कहीं झूठ का अंदेशा नहीं हुआ।
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#0@39 "ये भिक्षु कोई आम इंसान को नहीं है।"
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#0@40 अब कानाको को यक़ीन हो गया कि उन्हें और सावधानी बरतनी होगी।
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#0@41
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#0@41 अंत ५ - ब्याकुरेन सचमुच एक बहुत अच्छी व्यक्ति है।
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#0@42 ऑल क्लियर करने पर बधाई हो! जैसा मैंने सोचा था!
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अच्छा अंत ६ (सानाए-ख)
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#0@0 पवित्र पालकी जहाज़, जो आकाश में उड़ता है।
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#0@1 वह एक ख़ज़ाने का जहाज़ नहीं था,
बस एक आम जहाज़ जो आसमान में उड़ सकता था।
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#0@2 इस तरह आकाश में उड़ना ज़रूर मज़ेदार होगा।
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Suwako
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#0@3 "वाह, ये उड़ता जहाज़ तो बढ़िया है।"
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Byakuren
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#0@4 "तुम्हें आश्चर्यचकित करना कठिन है न?"
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Suwako
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#0@5 "वैसे, आजकल उड़न तश्तरी कौन सी नई बात है?"
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Byakuren
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#0@6 "उड़न तश्तरी?"
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Suwako
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#0@7 "ऐसे वस्तुओं तो उड़न तश्तरी कहते हैं।
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#0@8 कम से कम, जहाँ से हम आए हैं।"
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Byakuren
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#0@9 "तो ऐसा है।"
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Suwako
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#0@10 "उन्हें अज्ञात उड़ते वस्तु भी कहते हैं।"
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Suwako
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#0@11 "तो मुझे पता है कि ये जहाज़ क्या है, पर ये नन्हे उड़न तश्तरी?"
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Byakuren
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#0@12 "नन्हे उड़न तश्तरी, अर्थात् ये अज्ञात उड़ते वस्तु?
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#0@13 क्या तुम उड़ते भंडार के टुकड़ों के बारे में बात कर रही हो?"
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Sanae
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#0@14 "मुझे एक मिल गया!"
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Suwako
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#0@15 "लाजवाब। देखो, वो वस्तु।
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#0@16 वो देखने में तो भंडार का अंश तो नहीं लग रहा।"
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Byakuren
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#0@17 "सचमुच?
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#0@18 वो टूट गई है पर वो सच में एक लकड़ी के गोदाम का अंश था।"
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Suwako
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#0@19 "क्या? लकड़ी का? ये वस्तु?"
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Sanae
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#0@20 "छूने में तो ये लकड़ी का लगता है...."
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Suwako
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#0@21 "एक गोलाकार गोदाम? ये अपने समय से बहुत आगे था।"
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Byakuren
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#0@22 "क्या? गोलाकार?
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#0@23 नहीं, वो बस एक साधारण गोदाम था। क्या वो समय से पीछे है?"
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Sanae
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#0@24 "क्या?!"
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Suwako
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#0@24 "क्या?!"
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Byakuren
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#0@25 "क्या? मैंने कुछ अजीब कह दिया?"
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#0@26 वे तीनों कुछ समय के लिए आपस में बात करते रहे।
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#0@27 सुवाको को लगा कि सानाए के दिए रिपोर्ट में एक रहस्य था
और उसने स्वयं उड़ते जहाज़ की सवारी करने का निर्णय लिया।
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#0@28 वह रहस्य था ये उड़ते गोलाकार उड़न तश्तरी।
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#0@29 उसे विश्वास नहीं हुआ ये एक गोदाम के हिस्से थे।
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#0@30 सुवाको को लगा कि ब्याकुरेन और उसके योकाई अब भी कुछ छिपा रही है।
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#0@31 पर वह ग़लत थी।
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#0@32 सच्चाई यह थी ये उड़ते लकड़ी के टुकड़े ब्याकुरेन और
उसके योकाइयों को उड़न तश्तरी जैसे नहीं दिखते थे।
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#0@33 जो उड़न तश्तरी सानाए ने पकड़ा था वह एक आम लकड़ी जैसा दिखता था।
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#0@34 इसलिए उनकी बातचीत आगे नहीं बढ़ रही थी।
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#0@35 सानाए और सुवाको को यह समझ नहीं आया
और वे असंतुष्ट होकर जहाज़ से उत्तर गए।
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#0@36 उन्होंने यही मान लिया कि ब्याकुरेन के ज़माने में गोदाम गोल हुआ करते थे।
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#0@37 अंत ६ - उड़न तश्तरियों के पीछे किसका हाथ है?
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#0@38 ऑल क्लियर करने पर बधाई हो! जैसा मैंने सोचा था!
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बुरा अंत ११ (सानाए-क)
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#0@0 माकाई का हिस्सा, होक्काई।
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#0@1 सानाए को ब्याकुरेन ने पकड़ लिया और वह वापस घर नहीं लौट पाई।
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#0@2 उसके पास ब्याकुरेन का भाषण सुनने के अलावा और कोई चारा नहीं था....
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Sanae
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#0@3 "अच्छा, तो मानती हूँ कि सभी योकाई बुरे नहीं हैं।
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#0@4 पर मैं उन्हें देवताओं के समान मानने के लिए तैयार नहीं हूँ।"
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#0@5 सानाए चुपचाप ब्याकुरेन के वचन सुनती रही।
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#0@6 पहले वह सिर्फ़ चाहती थी कि ब्याकुरेन उसे घर भेज दे,
पर समय के साथ वह योकाइयों के साथ सहानुभूति होने लगी।
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#0@7 अंत ११ - तो, मैं घर नाब जा सकती हूँ?
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#0@8 एक क्रेडिट क्लियर करने की कोशिश कीजिए!
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बुरा अंत १२ (सानाए-ख)
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#0@0 माकाई का हिस्सा, होक्काई।
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#0@1 सानाए को ब्याकुरेन ने पकड़ लिया और वह वापस घर नहीं लौट पाई।
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#0@2 उसके पास ब्याकुरेन पर अपनी भावनाएँ उड़ेलने ले अलावा कोई चारा नहीं था।
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Sanae
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#0@3 "बात ये है कि इंसान हर समय योकाइयों के डर में रहते हैं।
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#0@4 तो हम तुम्हारे जैसे किसी व्यक्ति को ख़ुला घूमने नहीं दे सकते।
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#0@5 वैसे, मैं अपने विश्व में वापस कैसे जा सकती हूँ?"
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#0@6 सानाए को एहसास हुआ कि वह योकाइयों से घिरी हुई थी।
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#0@7 और वह तब समझी उन सबका विरोध करने से
उसकी जान भी जा सकती है।
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#0@8 अंत १२ - ज़िद्दी होना अच्छी बात नहीं।
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#0@9 एक क्रेडिट क्लियर करने की कोशिश कीजिए!
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